प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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... गायत्री प्रेमोन्मत हो कर बोली– भगवान् ऐसी बातें मुँह से न निकालो। मैं दीन अबला हूँ, अज्ञान के अन्धकार में डूबी हुई मिथ्या भ्रम में पड़ जाती हूँ, पर मैंने ...

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